इतिहास की महाभारत हो या आज की महाभारत, जनता न जगी तो जनता का विनाश सम्भव है।

महाभारत युद्ध शुरू होने की महक फिजाओ में गूंज रही है। शहरों से लेकर गांव और गांव के मोहल्लों में चर्चाओं का दौर जारी है। जहाँ भी दो लोग इकठ्ठा हो रहे है बस एक ही चर्चा
युद्ध, युद्ध और सिर्फ युद्ध
पुरे वातावरण में एक डर का माहौल व्याप्त है। युद्ध होगा तो कौन जीतेगा, कौन हारेगा। किसको कितना नुकसान होगा, किसको कितना फायदा होगा। किसके खेमे में कौन धुरंदर है। गद्दी किसको मिलेगी। सारा गणित लगाया जा रहा है इसके अलावा भी बहुत सी चर्चाये चल रही है।
कोई दुर्योधन को ठीक बता रहा है तो कोई युधिष्ठिर को,
गद्दी का असली वारिस कौन, दुर्योधन का अपमान से लेकर द्रोपती चीरहरण, जुआ, लाखशाह ग्रह, वनवास सब मुद्दों पर चर्चाये है। लोग बंटे हुए है खेमो में। चर्चाये दबी जुबान चल रही है क्योंकि लोकतंत्र थोड़े ही है जो आप खुल कर आवाज बुलंद करो।
कुछ लोग इनसे अलग भी चर्चाये कर रहे है। वो दोनों खेमों की आलोचना करते हुए बोल रहे है कि ये जो युद्ध होने वाला है ये सिर्फ सत्ता पर कब्जे के लिए होने वाला है। इसमें सबसे ज्यादा नुकशान पशुपालक, किसान, दस्तकार मतलब आम जनता का ही होगा। इनकी सत्ता की लालसा में जो मारे जायेगे वो आम लोग होंगे। ये लड़ाई कोई धर्म की लड़ाई नही है। ये लड़ाई गद्दी की लड़ाई हैं। दोनों खेमे ही लुटेरे है। इसलिए लड़ाई ही लड़नी है तो अपने लिए लड़े।
ऐसे लोगो की बाते अनसुनी की जा रही है। ऐसे लोगो को धर्मद्रोही, देश द्रोही की संज्ञा दी जा रही है। ऐसे लोगो को जेल में डाला जा रहा है या मरवाया जा रहा है।
दोनों खेमो द्वारा गांव, कस्बो के मुखियाओं को अपनी तरफ करने के लिए मीटिंगे की जा रही है। राजशाही है तो जिधर मुखिया उधर वहां की जनता ये तो लाजमी है, फोन मत रखना अभी पिक्चर बाकि है।

युद्ध के खर्चे के लिए किसानों का लगान बढ़ा दिया गया है। हथियार फैक्ट्रियों में जबरदस्ती नौजवानों की भर्तियां की जा रही है। युद्ध का उन्माद जोरों पर है। धर्म के धुरंधर, धार्मिक प्रवर्तक अपने-अपने खेमे के पक्ष में माहौल तैयार कर चुके है। प्रचार भोंपू जिनका काम तो था जनता को सच्चाई बताना लेकिन उन्होंने भी सत्ता की मलाई खाने के चक्कर में जनता से गद्दारी करते हुए जनता की आँखों पर काली पट्टी बांधने का काम किया।
अब वो दिन भी आ ही गया जिस दिन युद्ध होगा। आचार संहिता लग गयी। नियम कानून सुना दिए गए। दोनों खेमों की सेनाएं आमने-सामने आ डटीं है। सेनाओं में सैनिक जो कुछ दिन पहले किसान या मजदूर था लाल आँखे किये पुरे उत्साह में दुश्मन खेमें को हराने के लिए लालायित खड़े है। सेना में भी दोनों तरफ रिश्तेदार आमने-सामने है। किसी का जीजा इस तरफ है तो साला उस तरफ है, किसी का ससुर उस तरफ है तो दामाद इस तरफ है। लेकिन युद्ध का उन्माद जिसको धर्म की लड़ाई की संज्ञा दी गयी थी उसने सब रिश्ते नातो को ताक पर रख कर एक दूसरे की जान लेने के लिए लोगो को अँधा बनाकर आमने-सामने ला खड़ा किया है। युद्ध शुरू हो चूका है दोनों तरफ से लाशें गिर रही है। मरने वाले दोनों तरफ से आपसी रिश्तेदार है। चारो तरफ मातम पसरा हुआ है। महिलाएं विधवा हो रही है। किसी का बेटा मर रहा है तो किसी का बाप मर रहा है। चारो तरफ चिताएं जल रही है। लाशों को ढोने के लिए कंधे कम पड़ गए है। आँखों से आँशु सूख गए है। गांव मोहल्लों में सिर्फ महिलाएं और बुजर्ग बचे हुए है, मातम मनाने के लिए वो एक दूसरे के मर्गत में भी जा रहे है। मर्गत में बैठने, सात्वना देने इसके साथ ही उलाहना देने भी, कोई बोल रहा है कि मेरे बेटे को तो उसके जीजा ने, उसके फूफा ने या उसके साले ने मारा है। इस सब में सबसे पीड़ित है, वो है महिलाएं जिनके मरने वाले भी और मारने वाले भी दोनों ही परिवार से ही है।
किसी के पति को उसके भाई ने ही मारा है तो किसी के भाई, भतीजे को पति ने मारा है। जो अपँग हुआ है वो इलाज के लिए कराह रहा है। युद्ध ने लोगो का सब कुछ छिन लिया है। लोगो की आँखों से युद्ध की काली पट्टी धीरे-धीरे खिसक रही है। उनको अब वो देश द्रोही, धर्म द्रोही याद आ रहे है। लेकिन अब पछताये क्या होत है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।।।
तीर कमान से निकल चुका था जो विनाश करके ही वापिस लौटेगा। विनाश हो चूका था। जिधर देखो उधर विधवा, उधर लाशें, उधर अपँग
जीतने वालो को गद्दी मिल गयी। गद्दी पर बैठते ही शासक ने जनता पर नए-नए कर थोप दिए। नये-नये जनता विरोधी फरमान जारी कर दिए गए।

महाभारत से लेकर आज तक कितने ही युद्ध हुए है। उन्होंने सिर्फ विनाश ही किया। लेकिन एक भी युद्ध जनता के लिए नही लड़ा गया। युद्ध अपनी लूट को जारी रखने या लूट तंत्र पर कब्जे के लिए लड़ा गया। जनता को प्रत्येक युद्ध ने विनाश के कगार पर ही पहुंचाया है।
कासिम, गजनी, गोरी, बाबर, अकबर, सिंकदर, पृथ्वीराज, सुग्रीव, विभीषण, सांगा, महाराणा प्रताप, मान सिंह, या अंग्रेज सबने युद्ध गद्दी के लिए किये। कोई धार्मिक चोला पहन कर आया तो कोई व्यापारी बन कर आया। लेकिन ध्ये सिर्फ एक, सत्ता पर कब्जा।
समय बदला इस समय को बदलने में देश द्रोहियो, धर्म द्रोहियो का अहम रोल रहा, जनता भी कुछ जागरूक हुई की इन युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान हमारा और फायदा लुटेरे शासक का होता है।
अब नए समय में नया कानून बना। कानून कहता की सत्ता पर कब्जे के लिए तलवार की जरूरत नही होगी, सत्ता लूट के लिए नही बनी, सत्ता लुटेरो को लगाम लगाने के लिए होगी। सत्ता बहुमत मेहनतकश आवाम की रक्षा के लिए होगी। सत्ता हाशिये पर खड़े लाइन के आखिरी इंसान के लिए भी होगी। सत्ता सबकी होगी। सत्ता का चुनाव जनता करेगी। अब राजा आसमान से उतरकर नही आएगा, राजा जनता के अंदर से ही होगा।
जनता खुश हुई। वो खुशियां मना रही थी। वो फूल बरसा रही थी। अबकी बार फूलो की बारिस आसमान से नही जमीन से ही हो रही थी क्योंकि ये जनता की जीत थी, आसमानी लोगो की नही
अब न युद्ध होगा और न कोई अपनों को खोयेगा। अपनी है धरती अब अपना वतन है, अपनी है सत्ता अपना है चमन
लेकिन आसमान से आने वालों और उनके समर्थक धार्मिक पर्वतको में बैचनी, विचलन चल रही थी। अब उनको भी खाना खाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। उनको भी आम जनता की तरह आम जिंदगी व्यतीत करनी पड़ेगी। उनको भी पालकी की जगह जमीन पर चलना पड़ेगा। हल-फावड़ा चलाना पड़ेगा, मजदूरी करनी पड़ेगी। घोर कलयुग आ गया ऐसे शब्द इन आसमानी लोगो के मुंह से सुने जा रहे रहे। आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था। लेकिन इसी अँधेरे में जाति, धर्म, अंधराष्ट्रवाद ने एक नई आशा जगाई, अँधेरे में एक नई रोशनी की किरण दिखी। बस लुटेरे को अपना चोला बदल कर आम आदमी वाला चोला पहनना था बाकि काम जाति, धर्म, अंधराष्ट्रवाद ने करना था।
नई व्यवस्था पहले वाली से हजार गुणा बेहतर है लेकिन इसमें भी लुटेरा शासक अपनी जगह अप्रत्यक्ष तौर पर बनाये हुए है। उसने अब भी गद्दी के लिए समय-समय पर युद्ध करवाये, जातिय, धार्मिक दंगे करवाये। युद्ध का विरोध करने वाले अब भी देश द्रोही, धर्म द्रोही की संज्ञा से नवाजे गये। अब भी जेल से लेकर मौत तक उनका दमन जारी है।
एक बार फिर 2019 में सत्ता के लिए युद्ध का शंखनाद हो चूका है। धर्म-जात के प्रवर्तक जनता की आँखों पर पट्टी बांधने के लिए मैदान में पहुंच चुके है। प्रचार भोंपू भी लुटेरी सत्ता के प्रति अपना फर्ज ईमानदारी से निभा रहे है। जनता की पट्टी का काला रंग और काला करने के लिए सैनिको का बलिदान दिया जा रहा है। दोनों ही खेमे इस युद्ध को भी धर्म की रक्षा, राष्ट्र की रक्षा की जीत का नाम देकर मैदान में आ डटे है। मन्दिरो में आरती- घन्टाल बजाये जा रहे है, मस्जिदों, गुरद्वारों में मत्थे टेके जा रहे है।

“बुढ़ापे के कारण महाभारत में दादा भीष्म की और वर्तमान में अडवाणी की अवस्था नगण्य हो चुकी है। अब वो चला हुआ कारतूस के समान हो चूके है। जिस दादा भीष्म ने इस साम्राज्य को मजबूत खड़ा किया। आज वो तीरों की सन्यां पर लेटा हुआ अपने साम्राज्य के आखिरी दिन देख रहा है। अपनी ताकत का लोहा पुरे भारतवर्ष में मनवाया। उसकी आज हालात देखने लायक है। बुढ़ापा बैरी होता है सुना था, आज देखा भी जा रहा है। कोई आँशु भी पोछने नही आएगा ऐसा तो सपने में भी नही सोचा था। चलो छोड़ो इनको क्योकि जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा।”
हम जनता पर आते है –
जनता भी खेमों में बंट कर मंदिर-मस्जिद, कश्मीर, भारत-पाकिस्तान पर उलझी हुई है। वो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरी मुलभुत समस्याओं को भूल गयी है।
उसको न शिक्षा चाहिए, न रोजगार और न इलाज चाहिए। उनको न पूरी मजदूरी चाहिए न पूरा फसल का दाम चाहिए और न ही रोटी-कपड़ा-मकान चाहिए।
उनको युद्ध, युद्ध और सिर्फ युद्ध चाहिए।।।
युद्ध जब विनाश कर चूका होगा तब ये देश द्रोही, धर्म द्रोही की संज्ञा से नवाजे हुए मुसाफिर याद आएंगे।

Uday Che
9992801185, 9817233345

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