सिचाई नहरों का अस्तित्व मिटने के कगार पर

नितीश मालिक

पखांजूर –  संगम परलकोट इलाके के 50 गावं के लगभग हजारो किसानो को आज 45 साल के बाद भी परलकोट जलाशय के माध्यम से मिलने वाले पानी का इंतेज़ार हैं ।
45 साल पहले कभी इन क्षेत्रो में  जलाशय का पानी लवालब हुआ करता था और फसले लह-लहाती रहती थी । ज्ञात हो की केंद्र शासन के द्वारा दण्डकारण प्रोजेक्ट 1962 में द्वितीय युध्य के बाद बंगलादेशी शरणार्थियो के लिए इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था ताकि इस बांध से क्षेत्र के सभी किसानो को सुचारू रूप से सिचाई व्यवस्था उपलब्ध कराया जा सके । परलकोट क्षेत्र सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैला हैं और यह क्षेत्र कृषि सम्पदा में हमेशा आगे रहा हैं । डीएनके प्रोजेक्ट के तहत कृषि कार्य के लिए बड़े पैमाने में यहाँ नहरों का जाल किसानो के सुविधा के लिए बिछाया गया था , मगर किसान आज इन सुविधाओ से वंचित हैं ।
किसान मानिक मंडल,नित्तो देवनाथ,राजू बिस्वास,पंकज मंडल,बप्पी सरकार,अजय बाला,बिधान ओझा, अमल मंडल, ने बतलाया कि डीएनके प्रोजेक्ट की इन नहरों की सिचाई क्षमता वर्त्तमान की अपेक्षा कई गुना अधिक हुआ करती थी । लगातार अनदेखी के चलते आज इन नहरों की दुदर्शा इस हद तक पहुच चुकी हैं की इनका अस्तित्व और महत्त्व मिटने के कगार पर हैं । संगम क्षेत्र के किसानो को आज 45 वर्ष हो गए परलकोट जलाशय का पानी सरकार उपलब्ध नहीं करा पाई । जलाशय का देखरेख केंद्र से राज्य सरकार के हाथो हस्तांतरण होते ही हम किसानो की तक़दीर फुट गई जो आज भी हजारो हेक्टर जमीन बंजर पड़े हैं ।
करोडो का प्रोजेक्ट उपयोगहीन हो गया हैं यदि प्रशासन द्वारा इन नहरों की उचित देखभाल की जाती तो आज क्षेत्र के बड़े भू-भाग तक सिचाई की व्यवस्था मुहैया कराई जा सकती थी जिससे किसान साल भर फसल लेकर अपनी आमदनी में और भी वृद्धि करने में और भी सक्षम होते ।

इस संम्बंध में के.एस.उइके अनुविभागीय अधिकारी जल संसाधान विभाग उप-संभाग कापसी ने बतलाया बांध का स्ट्रक्चर और केनाल भी टूटने लगा हैं और गेट भी लीकेज हैं । स्टीमेट बनाकर भेजा गया है । जैसे आदेश स्वीकृत होता हैं काम चालू किया जायेगा ।

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